गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट अमृत के घूँटरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....
जीवन का स्थायी सुख
सच्चे सुखकी प्राप्ति आन्तरिक तत्त्वों से ही सम्भव है। सच्चा सुख मानवके मनकी तृप्ति, संतोष, स्वास्थ्य और प्रफुल्लतामें है। जो व्यक्ति तृप्त है, उसे अपने समीप रहनेवाली सभी वस्तुओंमें रस प्रतीत होगा। उसके पास जितना है, वह अपना सुख उसीमें ढूँढ़ता है। वह दूसरोंके वैभवको देखकर ईर्ष्याकी अग्निमें नहीं जलता, अपनी रूखी-सूखी खाकर संतोषकी साँस लेता है। वह उन्नत भविष्यके लिये निरन्तर प्रयत्नशील है; किंतु दूसरोंकी चीजें देखकर अतृप्त या ईर्ष्यालु नहीं। क्रोधी, लोभी या वासनामय नहीं है। उसे अपनी साधारण वस्तुओंमें, बिना सजे हुए घरमें, बन्धु-बान्धवोंमें, पशु-पक्षीमें ही आनन्द और सुख है। सुख तृप्तिमें है।
सच्चा सुख आपके स्वास्थ्यमें है। आपका स्वास्थ्य ही वह यन्त्र है, जिसके द्वारा आप अपना सुख नापते हैं। जैसा स्वास्थ्य वैसा संसार। रोगीको संसार रोगी, क्रोधीको क्रोधी, वासनामयको संसार वासनासे परिपूर्ण प्रतीत होता है। जितने दिन आपको संसारमें जीवित रहना है, जीवनके जितने खास गिनकर आपको दे दिये गये है उतना ही लम्बा या छोटा आपका संसार है। मृत्युके पश्चात् आपका रुपया-पैसा, बड़े-बड़े आलीशान मकान, जरी-रेशमके कपड़े या जायदाद किस कामकी है? अच्छा स्वास्थ्य ही आपके जीवनका रस है। जो जितने कालतक इसे बनाये रखता है, वह उतने ही कालतक सुखका रसपान करता है। स्वास्थ्य ही सुख है; क्योंकि सुखका अनुभव तो स्वास्थ्यद्वारा ही होता है।
सच्चा सुख प्रफुल्लतामें है। आपको जो मिला खाया, अपना कर्तव्य पालन किया; जो घरमें है, उसीमें संतोष किया -और फटे वस्त्रों, पसीनेसे भरे मुख, थकी हुई टाँगोंके बावजूद आपने हँस दिया। आपका चेहरा मृदु-मुसकानसे परिपूर्ण है, आप जिससे मिलते है, उसे प्रसन्न कर देते है, सर्वत्र हँसी, आशा, उत्साह, जिन्दादिली वितरित करते है तो आप सुखी हैं।
ह्यूमने कितनी महत्त्वपूर्ण बात कही है, 'मैं ऐसे प्रसन्न स्वभाव, जो सदैव प्रत्येक वस्तुको अच्छे दृष्टिकोणसे देखनेके आदी है-प्राप्त करना अधिक पसंद करूँगा, बनिस्बत इसके कि दस हजार पौंड वार्षिक आयकी सम्पत्तिका स्वामी बन जाऊँ।' जान लबकका मत है, 'यदि मनुष्योंको प्रफुल्लित रहनेकी
शिक्षा और अपने कर्त्तव्यका आनन्द सिखला दिया जाता तो संसार अधिक उज्ज्वल और श्रेष्ठ हो जाता।' कार्लायल कहता है, 'हमें ऐसा आदमी दो जो अपने कार्यको हँसते हुए करता है।'
कठिनाइयों सभी पर आती है, आपत्तियों से कौन बचा है? उत्तरदायित्व किसके ऊपर कम है? लेकिन सुखी वे हैं, जो हँसमुख-प्रसन्नचित्त रहते हैं और दूसरोंको भी प्रफुल्लता की वर्षामें सराबोर कर देते हैं।
सुख आत्माकी शान्तिमें है। यदि आपकी आत्मा नहीं दुखती, आपके दैनिक कार्योंसे संतुष्ट है तो आप आन्तरिक दृष्टिसे सुखी रहेंगे। जो अन्तःकरणकी पुकारके अनुसार आचरण करता चलता है, उसे सुख प्राप्त होता है। अन्तःकरणकी हत्या करना मानो अपनी हत्या कर लेना है। अन्तःकरणको बलवान् बनानेका साधन यह है कि आप कभी उसकी अवहेलना न करें। अन्तःकरणकी ध्वनिका पालन सबसे बड़ा धर्म और उत्कृष्ट जीवनका मार्ग है। अन्तरात्माको शान्ति दिये बिना सुख प्राप्त नहीं हो सकता। अन्तरात्मा तभी संतुष्ट रहेगी, जब आपके कर्म पवित्र, न्यायसंगत रहेंगे। झोपड़ीमें पड़े हुए तथा चिथड़ोंसे ढके हुए जीवनमें भी सुख है, यदि अन्तरात्मा संतुष्ट है।
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